Monday 14 April 2014

भाजपा ही रोक सकती है जंगलराज की वापसी


संघर्ष में लाठियां हमने खाईं, श्रेय लूटना चाहते हैं नीतीश 

भाजपा ने 90 के दशक में लालू प्रसाद के जंगल राज का डटकर विरोध किया और अब भाजपा ही जंगल राज की वापसी को रोक सकती है। जंगल राज और भ्रष्टाचार का विरोध करने के चलते उस समय विधान सभा के भीतर मेरे ऊपर हमला तक हुआ। सदन के बाहर भाजपा कार्यकर्ताओं पर लाठियां चलीं लेकिन अब नीतीश कुमार उस जंगल राज को समाप्त करने का श्रेय लूटना चाहते हैं। 

हकीकत तो यह है कि बिहार के जंगल राज के दिनों में नीतीश कुमार संघर्ष से हमेशा कतराते रहे। भाजपा ने जब चारा घोटाला के विरूद्ध अदालत का दरवाजा खटखटाया, तब नीतीश कुमार ने तीन दिन इंतजार कराने के बाद भी हलफनामे पर दस्तख्त करने से इनकार कर दिया था। उन्होंने भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ाई में भागीदारी का पहला मौका खो दिया।

सन 2000 में लालू राज को राजनीतिक चुनौती देने का जब अवसर आया, तब भाजपा के साथ तालमेल और टिकट बंटवारे में नीतीश कुमार का अहंकार आड़े आया। लालू-राबड़ी की सरकार को फिर राहत मिल गई। भाजपा के समर्थन से जब नीतीश कुमार को बिहार में पहली बार सरकार बनाने का मौका मिला, तो वे बहुमत नहीं सिद्ध कर पाए। सात दिन में सरकार गिर गई।

सरकार गिरने के बाद नीतीश कुमार ने राजद के कुशासन से लड़ने के लिए पटना में खूंटा गाड़ कर रहने की बात कही, लेकिन मौका मिलते ही दिल्ली जाकर मंत्री बन गए। भाजपा-गठबंधन की सरकार ही लालू राज से लोगों को राहत दिला पाई, लेकिन नीतीश कुमार ने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के चलते गठबंधन तोड़ा और फिर लालू प्रसाद की हिम्मत बढ़ाने का काम किया। इस चुनाव में तो जदयू वोट-कटवा पार्टी की औकात में आ गया है। नीतीश कुमार ने कभी विपक्ष में रह कर लालू प्रसाद की मदद की, तो कभी गठबंधन सरकार को तोड़ कर उन्हें फायदा पहुंचाया। बिना संघर्ष के पगड़ी में तुर्रा लगाने के शौकीन नीतीश कुमार से लोगों को सावधान रहना चाहिए। भाजपा विपक्ष में रही या शासन में, राजनीति जनता के हित में ही करती रही।

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