Friday 18 April 2014

बदलाव के तूफान का इशारा है भारी मतदान

(नरेन्द्र मोदी में दिखी आशा की किरण)

बिहार सहित देशभर में भारी मतदान बदलाव के तूफान का इशारा है। यह कोई साधारण घटना नहीं है। बिहार में पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में 17 फीसद ज्यादा वोट पड़े हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालन्दा में तो 22 फीसद तक अधिक मतदान हुआ है। किसी सरकार को बनाए रखने के लिए ऐसा नहीं हो सकता। साफ है कि यूपीए सरकार की नाकामियों से निराश लोगों ने केन्द्र में मजबूत और स्वच्छ सरकार के लिए उत्साह के साथ वोट डाले हैं। जनता में यह आत्मविश्वास बढ़ा है कि उनका वोट मुसीबतें बढ़नो वाली सरकार को सत्ता से बाहर कर सकता है।

लोकतंत्र की इस ताकत में भरोसा पैदा करने के लिए भाजपा और इसके नेता नरेन्द्र मोदी ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। छह माह में नरेन्द्र मोदी ने 380 से ज्यादा रैलियां कीं। इनमें जो भीड़ उमड़ी, उसने रिकार्ड तोड़ दिए। हर सभा में औसतन दो लाख लोगों का आना असाधारण घटना है। जवाहर लाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी की चुनावी सभाओं में भी इतने लोग नहीं आते थे। दक्षिण भारत की कुछ सभाओं में तो लोग टिकट लेकर नमो का भाषण सुनने आये। माहौल 1977 जैसा हो गया है। 

भाजपा ने पीएम-प्रत्याशी का नाम घोषित कर कमजोर नेतृत्व और खराब अर्थव्यवस्था से मुक्ति का स्पष्ट विकल्प देश के सामने रखा। इसका भी असर पड़ा है। मतदाताओं ने आत्मविश्वास से भरे नरेन्द्र मोदी में आशा की किरण देखी। भारी मतदान युवा और महिला वोटरों के गुस्से का इजहार भी है। युवा जहां बेरोजगारी से परेशान हैं, वहीं महिलाएं घर में महंगाई की मार और बाहर बढ़ती असुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। जाहिर है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग किसी अक्षम सरकार को बनाये रखने के लिए नहीं, बल्कि बेहतर सरकार को स्पष्ट बहुमत देने के लिए पोलिंग बूथ तक आए थे। मतदान के अगले चरण में भी यही सत्ताविरोधी तेवर दिखेगा। भारत इसी से बदलेगा।

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