Tuesday 8 April 2014

भारी मतदान से दें नक्सली हिंसा का जवाब

(प्रशासनिक लापरवाही से औरंगाबाद में गई जवानों की जान)

यह दुखद है कि हिंसा से बदलाव की सोच दुनिया भर में बेमानी होने के बावजूद नक्सली संगठन बिहार समेत कई राज्यों में बारूद और बंदूक का रास्ता नहीं छोड़ने पर आमादा हैं। दूसरी तरफ भारत में लोकतंत्र लगातार मजबूत हो रहा है। राज्य के नक्सली आतंक वाले इलाके की चुनाव सभाओं में भी भीड़ हो रही है। ऐसे में लोगों को पूरे हौसले के साथ मतदान कर नक्सली हिंसा का जवाब देना चाहिए। मौका 10 अपैल से शुरू हो रहा है। 

चुनाव बहिष्कार की अपील करना, हमले करना और बारूदी सुरंग बिछाना, लोकतंत्र विरोधी कार्रवाई है, लेकिन उग्रवाद की चुनौती के विरूद्ध सरकार की कमजोरी भी बार-बार सामने आती है। सुरक्षा बल के जवान बारूदी सुरंग हटाने और बम निष्क्रिय करने जैसी प्रक्रिया में जान गवां रहे हैं। उचित प्रशिक्षण और विस्फोट-प्रूफ जैकेट की कमी है।

सोमवार को औरंगाबाद जिले के ढिबरा थाना क्षेत्र में बारूदी सुरंग हटाने के दौरान विस्फोट में सी.आर.पी.एफ. के एक डिप्टी कमांडेन्ट और दो जवानों को शहादत देनी पड़ी। हर जिले में बम निरोधी दस्ता होता है, फिर औरंगाबाद में बारूदी सुरंग हटाने के लिए उन्हें क्यों नहीं भेजा गया? सवाल यह भी है कि जिन सी.आर.पी.एफ. जवानों को यह खतरनाक टास्क सौंपा गया था क्या वे इसके लिए प्रशिक्षित थे? क्या धमाके से बचाने लायक (ब्लास्ट-प्रुफ) जैकेट से उन्हे लैस किया गया था?

राज्य सरकार नक्सलियों के चुनाव बहिष्कार को बेअसर करने की पूरी तैयारी का दावा कर रही है लेकिन पहले चरण के मतदान से तीन दिन पहले विस्फोट में जवानों की मौत कई सवाल उठाती है। इससे सबक लेकर प्रशासनिक चुस्ती बढ़ाई जानी चाहिए। 

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