Monday 7 April 2014

तेजी से बढ़ा एन.डी.ए. का कारवां

(भाजपा-विरोधी अहंकारी नेताओं को झटका)

तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) का एन.डी.ए. में लौटना भाजपा और इसके पीएम प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के प्रभावी नेतृत्व की बढ़ती स्वीकार्यता का परिचायक है। तेदेपा नेता एन. चन्द्रबाबू नायडू के साथ आने से सीमांध्र और तेलंगाना में ही नहीं, पूरे देश में एन.डी.ए. की ताकत बढ़ेगी। रविवार को हुआ भाजपा-तेदेपा समझौता उन लोगों को करारा झटका है, जो भाजपा को राजनीतिक रूप से अछूत बताकर एन.डी.ए. के बिखरने की कुटिल कामनाए¡ कर रहे थे।

ताजा घटनाक्रम से फिर यह साफ हुआ है कि सांप्रदायिकता नहीं, विकास ही असली मुद्दा है। सांप्रदायिकता को तूल देकर भाजपा को किनारे करने की कोशिश को नाकाम करते हुए एन.डी.ए. का कारवां बढ़ने लगा है। दूसरी तरफ कांग्रेस और जदयू जैसी पार्टियों को दोस्त नहीं मिल रहे हैं। बाजी पलट गई है। कांग्रेस खुद अछूत समझी जा रही है। टी.आर.एस ने इसके साथ विलय करने से इनकार कर दिया है।

दूसरी तरफ मोदी को पीएम प्रत्याशी घोषित करने के बाद से भाजपा को कम से कम दस पार्टियों का समर्थन मिल चुका है। ये दल पहले भी साथ रह चुके हैं। कुछ नए साथी भी हैं। बिहार में रामविलास पासवान और उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी, तमिलनाडु की पांच क्षेत्रीय पार्टियां और उत्तर प्रदेश में अपना दल अब एन.डी.ए. के साथ है। महाराष्‍ट्र में शिवसेना समेत तीन दल और पंजाब में अकाली दल भाजपा के साथ मिलकर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं।

भाजपा के पक्ष में जिस तरह से जन समर्थन बढ़ा है, उसे देखते हुए चुनाव से पहले कुछ और दल एन.डी.ए. से जुड़ सकते हैं। इतिहास दोहराया जाने वाला है। 1996 में हमारे नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तीन दलों के साथ एन.डी.ए. की शुरूआत की थी। लोग मिलते गए और दलों का कारवां 24 तक पहुंच गया। 16वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम एन.डी.ए. 300+ का मिशन पूरा करेंगे। चुनाव बाद बीजू जनता दल और अन्नाद्रमुक भी गठबंधन में लौट सकते हैं। ये दल कभी न कभी भाजपा के मित्र रहे हैं। जनता और उससे जमीनी रि’ता रखने वाले क्षेत्रीय नेताओं को एन.डी.ए. में 'समृद्ध भारत और सशक्त भारत' की संभावना दिख रही है, लेकिन कुछ अहंकारी, परिवार-वादी और भ्रष्ट नेताओं को हवा के इस रूख का अंदाजा नहीं है।

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