Saturday 12 April 2014

बिहारियों को रोजगार, मान-सम्मान देने वाले गुजरात के प्रति लालू-नीतीश को नफरत क्यों?

बिहार के दस लाख से ज्यादा लोग गुजरात में रोजी-रोटी कमा रहे हैं। नरेन्द्र मोदी के सरकार ने ऐसा माहौल और अवसर दिया है कि लोग अपनी मेहनत का सर्वोत्तम भुगतान पाने के लिए गुजरात को चुनते हैं, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालू यादव सम्मान-सुरक्षा के साथ आजीविका देने वाले गुजरात के विकास का मजाक उड़तो हैं। गुजरात मॉडल से सीखने की जगह आंकड़ाें की मनमानी व्याख्या कर लोगों को भड़का रहे हैं।

जो लोग खुद लकीर नहीं खींच पाते, वे दूसरों की लकीर मिटाने की कोशिश करते हैं। नीतीश कुमार और लालू प्रसाद फिलहाल यही कर रहे हैं। लालू प्रसाद ने बिहार की अर्थव्यवस्था को इतना चौपट किया कि लोगों को अपने प्रदेश में रोजगार मिलना मुश्‍िकल हो गया। पिछले नौ महीनों से नीतीश सरकार ठप पड़ी है। अपनी नाकामी छिपाने के लिए लालू -नीतीश गुजरात के विकास पर अंगुली उठाते हैं।

सच तो बिहार के लोग जानते हैं। बिहार की कोई ऐसी पंचायत नहीं, जहां के 10-20 लोग आजीविका के लिए गुजरात न गए हों। गुजरात से लौटकर लोग अपने गांव-देहात में बताते हैं कि गुजरात में कितना विकास हुआ है। नीतीश कुमार और लालू प्रसाद बताएं कि गुजरात में कभी बिहार के किसी कामगार का अपमान हुआ हो?
दूसरी तरफ कांग्रेस-शासित असम में बिहारी मारे जाते हैं और कांग्रेस से दोस्ती रखने वाले लालू प्रसाद कुछ नहीं कहते। महाराष्‍ट्र में भी बिहारियों का अपमान होता है, लेकिन वहां की कांग्रेस-एन.सी.पी. सरकार के खिलाफ चुप्पी साध ली जाती है। नीतीश कुमार तो मुम्बई में अपनी सभा के लिए राज ठाकरे के सामने घुटने टेक चुके हैं।

गांधी से जेपी तक गुजरात और बिहार का रिश्‍ता पुराना है, लेकिन जेपी को भूलकर राहुल-सोनिया की रट लगाने वाले लालू प्रसाद गुजरात पर जुबानी हमले कर रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री तो गुजरात को घृणा की निगाह से देखते हैं मानो वह हिन्दुस्तान के बाहर है। बिहार के लोग अपनी और गुजरात की साझा तरक्की के लिए काम कर रहे हैं। वे लोकसभा चुनाव में मतदान के जरिए भी इस रिश्‍ते पर फैसला सुनाएंगे।

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