Tuesday 15 April 2014

देश पर कमजोर प्रधानमंत्री थोपना चाहते हैं लालू-नीतीश

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद अौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार देश पर कमजोर प्रधानमंत्री थोपना चाहते हैं। ये दोनों एक दूसरे के खिलाफ दिखते हैं, लेकिन काम एक ही मकसद के लिए कर रहे हैं। दूसरी तरफ भाजापा नरेंद्र मोदी के रूप में देश को मजबूत प्रधानमंत्री देने के लिए लोकसभा के चुनाव में पूरी जिम्मेदारी के साथ जनता से समर्थन मांग रही है।

पिछले दो दिनों में जो चर्चित किताबें सामने आईं, उनसे पता चलता है कि किस तरह प्रधानमंत्री पद को लगातार लाचार बनाया गया अौर इसके चलते देश को क्या परिणाम भुगतने पड़े। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने मंत्रियों के दबाव में इतने मजबूर हो गये कि उन्हें कोल ब्लॉक की निलामी करने की जगह उसका आवंटन करना पड़ा। यूपीए सरकार के मंत्री सर्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में पैसे लेकर नियुक्ति‍यां कराते रहे और सीएमडी जैसे बड़े पदों पर बैठे अफसरों से उगाही करते रहे। पीएम इतने असहाय थे कि मंत्री उनके फैसले बदल देते थे। यदि मजबूत प्रधानमंत्री होते तो इस तरह न तो देश के संसाधनों की लूट होती और न भ्रष्टाचार बढ़ता।

प्रधानमंत्री की पूर्व मिडिया सलाहकार संजय बारू की पुस्तक बताती है कि सरकार के अहम फैसलों पर भी पीएम का जोर नहीं चलता था। फाईलें पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास जाती थी। यहां तक कि प्रधानमंत्री से बात किए बिना प्रणव मुखर्जी को वित्त मंत्री बना दिया गया।

पूर्व कोयला सचिव की किताब के अनुसार यूपीए-। के दौरान बात सिर्फ कोल ब्लॉक के आवंटन में घोटाले तक सीमित नहीं थी। भ्रष्टाचार के विरूद्ध प्रतिरोध लगभग खत्म हो चुका था। नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर 'जीरो टालरेंस' की बात करते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार की बाढ़ लाने वाली कांग्रेस के साथ 'फ्रेंडली मैच' खेलते हैं। किशनगंज में कांग्रेस के पक्ष में जदयू प्रत्याशी का हटना इसी सांठ-गांठ का नमूना है। जदयू ने भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस से हाथ मिला लिया। नीतीश कुमार को कांग्रेस में भविष्य का दोस्त नजर आता है, इसलिए वे सिर्फ भाजपा पर अनर्गल हमले करते हैं।

बिहार अौर पूरे देश में जिस तरह नरेंद्र मोदी के पक्ष में लहर है, उससे साफ है कि धर्मनिरपेक्षता के मुखौटे पहनकर कमजोर प्रधानमंत्री बनवाने की लालू-नीतीश की कोशिशें नाकाम रहेंगी।

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