Thursday 10 April 2014

कम्युनिस्टों से मिल कर बिहार को बंगाल जैसा कंगाल बनाना चाहते हैं नीतीश


 अंग्रेजी में कहावत है ''Man is known by the company he keeps" यानी आदमी की पहचान उसकी संगत से होती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वामपंथियों की संगत में पड़ गए हैं। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) से प्रत्यक्ष गठबंधन और नक्सली संगठनों से गुप्त दोस्ती के चलते वे पूंजी को गाली दे रहे हैं। ये वही वामपंथी हैं, जिन्होंने पूंजी के प्रति अपने निंदा भाव के चलते 34 साल में पश्‍िचम बंगाल को कंगाल कर दिया। वहां की जनता उद्योग-व्यापार ठप पड़ने के कारण रोजगार के लिए तरस गई।

कम्युनिस्टों के दोस्त नीतीश कुमार रोजगार और खुशहाली लाने वाली पूंजी को 'आवारा' बता रहे हैं, जबकि मुख्यमंत्री के रूप में वे बिहार में पूंजी लाने के लिए दिल्ली से मुंबई तक दौड़ लगाते हैं। चुनाव के समय पूंजी को कोसना और सरकार चलाने के लिए उसे पुचकारना, इस दोहरे चरित्र के कारण नीतीश सरकार की साख समाप्त हो चुकी है। पिछले नौ महीने से राज्य में कोई पूंजी निवेश नहीं हुआ है।

बिहार में जब तक भाजपा सरकार में थी, निवे’कााें को यहां करोबार करने लायक माहौल मिलने का भरोसा था, लकिन अब तो भाकपा की दोस्ती से चुनाव जीतने के लिए पूंजी को खुलकर गाली दी जा रही है। इस मानसिकता के कारण जद-यू की सरकार के रहते कोई निवेशक बिहार में पूंजी नही लगा सकता। यह रवैया राज्य के आर्थिक विकास में बाधक है। भविष्य में भी निवेश कराना कठिन होगा।

भाजपा के सरकार से हटते ही विकास ठप्प हो चुका है और अब भाकपा से दोस्ती कर नीतीश कुमार फिर बिहार से पूंजी पलायन का माहौल बना रहे हैं। इस लोकसभा चुनाव में लागों को तय करना है कि वे खुशहाली, पूंजी, उद्योग-व्यापार और रोजगार को बढ़वाा देने वाले एन.डी.ए. गठबंधन को सत्ता में देखना चाहते हैं, या उन्हें जो बंगाल की तरह कंगाल बनाना चाहते हैं।

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