(मंत्री करते हैं शहीदों का अपमान)
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार की जनता के दुख की घड़ी में गैरहाजिर रहकर बार-बार अपनी संवेदहीनता जाहिर की है। जून 2013 में विषाक्त मिड-डे मील खाने से सारण जिले के मशरख में 23 स्कूली बच्चों की मौत हुई, लेकिन मुख्यमंत्री ने पीडि़त परिवारों से मिलने जाना जरूरी नहीं समझा। जो बीमार बच्चे बेहतर इलाज के लिए पटना लाए गए उन्हें देखने के लिए वे पीएमसीएच तक भी नहीं गए।
जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी सेना से जूझते हुए बिहार के चार जवान शहीद हुए। जब इनका शव पटना आया, तब सम्मान प्रकट करने के लिए बिहार सरकार का कोई मंत्री हवाई अड्डे पर नहीं था। शहीद के परिवार को सांत्वना देने भी नहीं गए नीतीश कुमार। जो शहीद हुए थे, वे भी बिहार के बेटे थे। मुख्यमंत्री की संवेदनहीनता का ही परिणाम था कि उनकी सरकार के एक मंत्री ने शहीदों के प्रति अपमानजनक टिप्पणी की और कहा कि सेना मे तो लोग मरने के लिए ही जाते हैं। नक्सली हमले में शहीद जवानों के प्रति भी मुख्यमंत्री का ऐसा ही संवेदनहीन रवैया होता है। अनुग्रह राशि के लाख-दो-लाख देकर कर्तव्य की इतिश्री मान ली जाती है।
अक्टूबर 2013 में भाजपा की हुंकार रैली के दौरान हुए सीरियल धमाकों में जो लोग मारे गए, उनके परिजनों को सांत्वना देने के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी आए, लेकिन नीतीश कुमार इनमें से किसी भी परिवार से मिलने नहीं गए। क्या मरने वाले लोग बिहारी नहीं थे?
उत्तराखण्ड में भयानक भू-स्खलन के दौरान हजारों लोग मारे गए। बिहार के लोग भी हताहत हुए, लेकिन नीतीश सरकार ने राहत और बचाव के लिए कोई तत्परता नहीं दिखाई। लगभग दो सप्ताह तक कोई सुध नहीं ली गई। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा यह कि उत्तराखण्ड त्रासदी में देश के साथ खड़े होने वाले नरेन्द्र मोदी पर टीका-टिप्पणी की गई।
19 अगस्त 2013 को खगडि़या जिले के धमारा में रेल पटरी पार करते समय 37 लोगों की मृत्यु हुई और 100 से ज्यादा लोग जख्मी हुए लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वहां नहीं गए। उनकी संवेदनहीनता जले पर नमक साबित होती है। लोकसभा चुनाव में मतदाता उन्हें नहीं चुनना चाहेंगे, जो विपत्ति में साथ खड़े होना जरूरी नहीं समझते।
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