आतंकवाद पर नीतीश का सांप्रदायिक नजरिया
भाजपा पर साम्प्रदायिक चश्मे से आतंकवाद को देखने का मिथ्या आरोप लगाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं आतंकवाद को साम्प्रदायिक और वोट-बैंक की राजनीति के चश्मे से देखते हैं। बोध गया धमाके से पहले खुफिया सूचनाओं की अनदेखी और आतंकी यासीन भटकल की गिरफ्तारी के बावजूद बिहार पुलिस का उससे न पूछताछ करना और न उस पर मुकदमा करना साबित करता है कि नीतीश सरकार आतंकवादी का मज़हब देखकर अपनी प्रति-क्रिया तय करती है, जबकि भाजपा मानती है कि आतंकवादी का कोई धर्म-ईमान नहीं होता है। बिहार सरकार से भाजपा के हटते ही आतंकी घटनाओं में तेजी आना और दरभंगा-मोड्यूल बनाकर आतंकवाद फैलाने वालों का दुस्साहसी होना नीतीश कुमार की सांप्रदायिक राजनीति का ऐसा परिणाम है, जो बिहार के विकास को बाधित कर रहा है। आतंकियों से जुड़ी इशरत जहां को बिहार की बेटी बताना इसी वोट-बैंक की राजनीति का हिस्सा है। समस्तीपुर में आतंकी शाहीन अख्तर के चाचा के पक्ष में खड़ा दिखने वाले जद-यू के नेताओं ने बिहार को विकास के रास्ते से भटका कर इसे आतंकियों के अभयारण्य में बदलने का काम किया है।
नीतीश कुमार आतंकवाद को आतंकियों के नजरिए से देखते हैं। भाजपा आतंकवाद को वोट या संप्रदाय की नजर से नहीं, बल्कि देशहित की दृष्टि से देखती है। नीतीश कुमार आतंकवादियों को धार्मिक योद्धा (जेहादी) भी कह दे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। जिस कांग्रेस से उनकी हमदर्दी है, उसके नेता पहले ही आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन के लिए आदरसूचक शब्द का उपयोग कर चुके हैं, अब नीतीश कुमार भी 'भटकल जी' '’शाहाीन अख्तर जी' जैसे शब्द चुन सकते हैं। भाजपा का स्पष्ट मत है कि आतंकवाद का न हरा रंग होता है और न ही भगवा। आतंकवादी न हिन्दु होता है न मुसलमान, वह केवल आतंकवादी होता है।
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