Thursday 3 April 2014

आतंकी का महिमा मंडन शहीदों का अपमान


आतंकी का महिमा मंडन शहीदों का अपमान

आज देश में अगर आतंकवाद एक बड़ी समस्‍या है, तो उसकी जड़ है वोट बैंक के लिए आतंकी का धर्म देखकर उसका महिमा मंडन करना और सुरक्षा एजेंसियों के प्रति अविश्‍वास पैदा करना । कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी का रायबरेली में परचा भरने से पहले दिल्‍ली के शाही इमाम से मिलना और बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार का गुजरात में सुरक्षा एजेंसियों की कार्रवाई पर सवाल उठाना सांप्रदायिक राजनिति का शर्मनाक उदाहरण है।

इशरत जहां के रिश्‍ते आतंकियों से थे। गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में जो पहला हलफनामा दायर किया, उसमें इशरत को आतंकी बताया। उसके साथ मारे गए दो लोग भी आतंकवादी थे। मुंबई हमले में संलिप्‍त हेडली ने पूछताछ के दौरान इसकी पुष्टि की, लेकिन सांप्रदायिकता की राजनीति आतंकियों के बचाव में आ गई।
केन्‍द्र की कांग्रेस सरकार के राजनीतिक दबाव में हलफनामा बदला गया।  उसे आतंकी मानने से परहेज किया गया और बिहार में मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार इशरत को ‘बिहार की बेटी’ बताकर उसका महिमा मंडन करने लगे। सवाल यह है कि अगर इशरत आम नागरिक थी, तो वह आतंकवादियों के साथ क्‍या कर रही  थी ? गुजरात में आतंकियों के खिलाफ सख्‍ती हुई, इसलिए प्रदेश में अमन-चैन कायम हैा  वहां की तरक्‍की से सभी धर्मों के लोगों के घर खुशहाली आ रही है।
बिहार के दरभंगा और मधुबनी में धर्म के नाम पर युवाओं को गुमराह कर यासीन भटकल जैसे आतंकी अपना जाल फैलाते रहे, लेकिन नीतीश सरकार आंखे बंद किये रही।  बोधगया से लेकर पटना तक में सीरियल धमाके हुए। पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को राजनीतिक दबाव में रखा गया है परिणामत: इनकी कार्यक्षमता घटती चली गई।
इशरत जहां मामले में सी0बी0आई0 ने गुजरात सरकार को क्‍लीनचिट दी और बटाला हाउस मुठभेड़ मामले में दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय ने क्‍लीनचिट दिया, लेकिन आतंकवाद को Political Cover  देने वाले नीतीश कुमार और दिग्विजय सिंह जैसे नेता बाज नहीं आ रहे हैं। केन्‍द्र में मोदी सरकार बना कर Political Cover  देने वालों को करारा जवाब देना जरूरी है।
आतंकवादी और शातिर अपराधी आम लोगों की हत्‍या करते हैं, लेकिन जब वे पुलिस या सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मारे जाते हैं, तब देश का हित ताक पर रखकर राजनीति करने वाले लोग उनके बचाव में आते हैं। ऐसे लोग संदेह का लाभ आतंकियों-अपराधियों को देते हैं और सुरक्षा एजेंसियों का मनोबल गिराते हैं। ये हत्‍यारों के मानवाधिकार की बात करते हैं, लेकिन उन लोगों के मानवाधिकार का खून उन्‍हें नहीं दिखता, जो इनकी करतूत का शिकार होते हैं।

फर्जी मुठमेड़ एक निंदनीय कार्रवाई है, लेकिन राजनीतिक फायदे के लिए आतंकी- अपरा‍धी का मजहब देखकर हर साहसिक कार्रवाई को फर्जी बताना भी एक गैर जिम्‍मेदाराना हरकत है। दुर्भाग्‍यवश, मुख्‍यमंत्री और जनप्रतिनिधि जैसी भूमिका में रहने वाले लोग भी आतंकवाद के विरूद्ध लड़ाई को कमजोर करने लगे हैं। इन्‍हें पुलिस, सुरक्षा बल या फौज के जवानों का मरना नहीं दिखाई देता। ऐसे ही नेता कहते हैं कि ‘लोग सेना में तो मरने के लिए ही जाते हैं।’ इशरत जहां को ‘बिहार की बेटी’ बताना और सीमा पर शहीद बिहार के सपूतों के प्रति अपमानजनक बातें कहने वालों को मंत्री बनाए रखना किस मानसिकता का सूचक है ?


लोक सभा के चुनाव में बिहार अपने बहादुर सैनिक के अपमान का भी जवाब देगा।  

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