Saturday 19 April 2014

अख्तरूल के ईमान और बयान पर संज्ञान ले चुनाव आयोग

(ध्रुवीकरण की अपील आचार संहिता का उल्लंघन)

किशनगंज संसदीय क्षेत्र से जदयू उम्मीदवार अख्तरूल ईमान का कांग्रेस के पक्ष में मैदान छोड़ना और सांप्रदायिक आधार पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण की अपील करना चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। इस पर चुनाव आयोग को संज्ञान लेना चाहिए। अख्तरूल का ईमान बदलना कांग्रेस, राजद और जदयू के बीच गुप्त समझौते का हिस्सा है। यह भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ धार्मिक भावनाए¡ भड़काने का मामला है। चुनाव से हटने की घोषणा करते समय अख्तरूल ने कहा था ''मैं नहीं चाहता कि मुसलमानों के वोट बटने और भाजपा के एक और एमपी की जीत के लिए मुझपर कोई आरोप लगाए''। उन्होंने अन्य चुनाव क्षेत्रों के मुस्लिम उम्मीदवारों से भी ऐसा करने की अपील की थी। चुनाव आयोग को उनकी अपील और बयानों का अध्ययन कर कड़ी कार्यवाई करनी चाहिए। 

अख्तरूल के जरिए जदयू सीमांचल के कुछ क्षेत्रों में भाजपा के विरूद्ध वोट-ट्रान्सफर कराने की साजिश कर रहा है। यदि अख्तरूल ने पार्टी की नीयत के खिलाफ काम किया है, तो उन्हें अब तक निष्कासित क्यों नहीं किया गया? मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस पर चुप क्यों हैं? उन्होंने कहा है कि नरेन्द्र मोदी को सत्ता से दूर रखने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। क्या जदयू किशनगंज और आसपास के क्षेत्रों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर उतर कर अपने गिरते सियासी ईमान की हद बताना चाहता है?

दूसरी तरफ भाजपा के पीएम-प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि हिन्दु-मुस्लिम आधार पर वोट मांगने के बजाय वे चुनाव हारने को तैयार हैं। उन्हें धर्म निरपेक्षता के नाम पर हिन्दु-मुस्लिम भाईयों का बटवारा मंजूर नहीं है। उन्होंने विकास और मजबूत सरकार के लिए किसी धार्मिक समुदाय से नहीं, बल्कि देश के सवा अरख लोगों से समर्थन मांगा है। लोकसभा चुनाव के अगले चरण में लोग नीतीश-लालू के धुवीकरण-मॉडल को खारिज करेंगे और 125 करोड़ लोगों की बात करने वाले मोदी मॉडल का साथ देंगे।

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