Monday 21 April 2014

शीशे के घरों से जारी नमो पर पत्थरबाजी

भाजपा और इसके पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकपियता से बेचैन नेताओं में अनर्गल आरोप लगाने की होड़ लगी है। खुद अपना चेहरा आईने में देखे बिना वे नरेंद्र मोदी को तानाशाह, हिटलर, मुसोलिनी या ईदी अमीन जैसा बता रहे हैं।

देश जानता है कि आपातकाल लागू करने वाली इंदिरा गांधी कितनी बड़ी तानाशाह बन गई थीं और किस तरह सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लाचार बना रखा है। जनता दल-यू में न कोई संसदीय बोर्ड है, न चुनाव समिति। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगे पार्टी में किसी की नहीं चलती। जयदू सरकार के मंत्री नेरेन्द्र सिंह भी कह चुके हैं कि पार्टी में राह चलते लोगों को टिकट दे दिया जाता है। जदयू को यह तानाशाही नहीं दिखती।

राजद में लालू प्रसाद पत्नी को मुख्यमंत्री बनवायें, विधान परिषद का सदस्य बनवायें या कर्मठ नेता का टिकट काट कर बेटी को उम्मीदवार बनवा दें, विरोध में कोई बोलने वाला नहीं होता। राजद को तानाशाही का यह परिवारवादी चेहरा नहीं दिखाई देता।

अपनी तानाशाही छिपाते इन दलों के विपरीत भाजपा एक लोकतांत्रिक पार्टी है, जिसमें विभिन्न स्तरों पर चर्चा के बाद फैसले लिए जाते हैं। यह एक व्यक्ति की पार्टी नहीं है, इसलिए इसका संसदीय बोर्ड है। चुनाव समिति है। सामूहिक निर्णय से पार्टी भी चल रही है और इसकी देख-रेख में गुजरात-मध्यप्रदेश समेत विभिन्न राज्यों की सरकारें भी अच्छा काम कर रही हैं। तानाशाही का आरोप लगाने वाले खुद शीशे के घरों में रह कर भाजपा पर पत्थबाजी कर रहे हैं। भाजपा का संगठन ऐसा है कि इसमें प्रधानमंत्री बनकर किसी का तानाशाह बनना तो दूर, पार्टी के भीतर भी कोई ऐसा नहीं कर सकता।

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