पिछली सदी में 1990 के दशक में लोग देख चुके हैं कि जोड़-तोड़ और कांग्रेस की कृपा से बनी सरकारों से देश को कितना नुकसान उठाना पड़ा। चंद्रशेखर, एच.डी. देवगौड़ा और इन्द्रकुमार गुजराल के रूप में कमजोर प्रधानमंत्री मिले। कांग्रेस ने इन्हें प्रधानमंत्री बनवा कर पिछले दरवाजे से शासन किया और अपनी सुविधानुसार समर्थन वापस लेकर सरकारें गिरायीं या देश पर चुनाव थोप दिया। मोर्चा सरकारें देश पर बोझ साबित हुई। राजनीतिक अस्थिरता के चलते अर्थव्यवस्था चौपट हुई और विकास के पहिए थम गए। दे’k को सोना गिरवी रखना पड़ा था। क्या मोर्चा सरकार की बात करने वाले लोग फिर वही हालात पैदा करना चाहते हैं।
जनता नरेन्द्र मोदी को मजबूत प्रधानमंत्री के रूप में देख रही है, क्योंकि नब्बे के दौर वाली गलती कोई 21वीं सदी के इस दौर में दोहराना नहीं चाहता। तरक्की और रोजगार के लिए केन्द्र में स्थायी सरकार जरूरी है। मतदान के अगले चरणों में भी लोग इसी मुद्दे को ध्यान में रखकर वोट डालेंगे और भाजपा 300 सीटें जीतने का लक्ष्य प्राप्त करेगी। हमने 1977 में देखा था कि जब जनता ठान लेती है, तब असंभव कुछ भी नहीं होता। बदलाव होकर रहता है।
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