तो दोस्तों, फिर याद आई घमंडी बिल्ली की कहानी !
शेर था राजा, पर बिल्ली समझती थी खुद को रानी !
चंद गलियों में बिल्ली करती थी राज
कुछ चूहे पकड़ने से बनने लगी थी खास
लोग करने लगे थोड़ी तारीफ
उसे मिलने लगा दूध-रोटी का ग्रास
बिल्ली का बढ़ा दंभ,घटने लगी साख
वह खुद को समझने लगी सयानी।
उसे लगा कि अब वह शेर से लड़ा सकती है पंजा,
गलियों की रानी जंगल पर कस सकती है -शिकंजा!
वक्त ऐसा भी आया, उसने शेर को सामने पाया
वनराज की दहाड़ से बिल्ली का सिर चकराया !
खिसकने लगी पैरों तले की जमीन,
जंगल का राज तो क्या मिलता, उड़ी आंखों की नींद !
लोगों ने समझाया, सपना देखना अच्छा,
लेकिन अहंकार दे सकता है गच्चा!
शेर से लोग कर रहे थे प्यार,
बिल्ली का गुस्सा हो रहा था आपे से पार,
उसने सोचा करेगी वो अपने तीर से वार!
पर शेर तो शेर है और बिल्ली तो बिल्ली,
जनता उड़ा रही हताशा की खिल्ली,
क्योंकि शेर तो अब चल पड़ा है राजधानी दिल्ली!
तो दोस्तों सबको समझना चाहिए कौन है शेर,
बिल्ली शेर नहीं, तो लग रहे खट्टे अंगूर
इस चक्कर में कर ली इतनी मुठभेड़
पर मौसी अब तो हो गयी न इतनी देर?
अब आएगा दिल्ली में भारत का शेर !
तो बिल्ली मौसी, अब मानो तुम हार,
झूठे दिल से ही सही, कह दो एक बार,
अबकी बार मोदी सरकार।
billi sach kaise kare sweekar?
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