Friday 9 May 2014

लालू ने जितना रोका, भाजपा उतनी ताकतवर हुई

(मोदी को रोकने वाले इतिहास के कूड़ेदान में होंगे)

देश में सार्थक बदलाव के लिए नरेंद्र मोदी के पक्ष में जो माहौल बना है, उसे रोकना अब लालू प्रसाद और नीतीश  कुमार के बूते की बात नहीं। चुनाव सभाओं में राजद प्रमुख लालू प्रसाद दंभ भर रहे हैं कि उन्होंने जैसे 1990 में गुरू (लाल कृष्ण आडवाणी) की रथयात्रा को रोका था, उसी तरह चेला (नरेंद्र मोदी) को पीएम बनने से रोकेंगे। सच तो यह है कि जब-जब भाजपा को रोकने की कोशिश की गई, पार्टी उतनी तेजी से ताकतवार हुई। इस बार तो मोदी को रोकने की कोशिश करने वाले लोग इतिहास के कूड़ेदान मे होंगे।

जब लालू प्रसाद ने 1990 में आडवाणी का रथ रोका, केन्द्र में भाजपा विरोधियों की सरकार चली गई। भजपा लोकसभा में अपनी शक्ति बढ़नो में सफल हुई। 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार 13 दिन के लिए, फिर 13 महीनों के लिए प्रधानमंत्री बने। उन्होंने 2004 तक प्रधानमंत्री के रूप में देश को प्रखर नेतृत्व प्रदान किया। भाजपा-विरोध की राजनीति करने वालों को 1999 में गहरा झटका लगा था। लोकसभा के चुनाव में अविभाजित बिहार की 54 में 40 सीटों पर एनडीए के प्रत्याशी जीते थे। 

लालू प्रसाद ने भापजा के खिलाफ जितना जोर लगाया, जितनी अनर्गल बातें कीं, पार्टी को उतना अधिक लाभ हुआ। उनके राज में मतपेटी या ईवीएम से राजद के बहुमत का जिन्न निकलता था, लेकिन इस बार 16 मई को मोदी समर्थन का जिन्न निकलेगा। इस चुनाव के सभी चरणों में माई या लव-कुश जैसे समीकरण नाकाम रहे। सभी जात-जमात के लोगों ने महंगाई-भ्रष्टाचार-बेरोजगारी के विरोध में जम कर मतदान किया। युवाओं ने जातीय-मजहबी ठेकेदारों को दरकिनार करते हुए बेहतर भविष्य और मजबूत सरकार के लिए वोट देकर लोकतंत्र को मजबूत किया है। मतदान का प्रतिशत बढ़ना इसका प्रमाण है। 

जनता का अजेय समर्थन पाने के लिए नरेन्द्र मोदी ने देश भर में 400 से अधिक रैलियां कीं। उन्होंने 10 करोड़ से ज्यादा लोगों से सीधा संवाद करने का विश्व रिकार्ड बनाया। देश के बारे में उनका विजन जानने के लिए लोग टिकट लेकर भी सभा में आए। नमो के प्रति सभी वर्गों में जो विश्वास दिख रहा है, उससे स्पष्ट है कि भाजपा सोलहवीं लोकसभा में अकेले स्पष्ट बहुमत पायेगी और सहयोगी दलों के साथ अबतक की सबसे मजबूत सरकार बनायेगी।

1 comment:

  1. भाजपा के जाने-माने कद्दावर नेता और प्रख्यात चिकित्सक डॉ० सी पी ठाकुर का यह वक्तव्य कि "भाजपा उन्हें चपरासी समझती है" भाजपा में रह रहे मात्र एक नेता का दर्द नहीं बल्कि इस पार्टी की बिहार इकाई में सवर्णों की वास्तविक स्थिति को प्रदर्शित करता वक्तव्य है. माननीय सुशील मोदी की अगुवाई में केन्द्रीय नेताओं को बरगलाकर बिहार भाजपा ने अघोषित तौर पर पार्टी में सवर्णों को अनवरत मुख्य-धारा की राजनीति से अलग-थलग रखने का कुचक्र अभियान चला रखा है. यहाँ सब कुछ मोदी की मर्जी से होता है, अगर किसी ने विरोध करने की जहमत उठाई तो उसे किनारा लगा दिया जाता है, भय और लोभ वश कुछ सवर्ण नेता सुशील मोदी की चरण-चाकरी कर अपने को नेता होने का भ्रम पाल बैठे हैं. कुछ लोग कहते हैं कि भाजपा का आधार मजबूत करने में सुशील मोदी की मेहनत है. मुझे लगता है सुशील मोदी का अपना जनाधार तो है नहीं फिर पार्टी का जनाधार कैसे बढ़ा सकते हैं. पार्टी को मजबूत, जमीनी पकड़ और लोगों में पैठ रखनेवाले नेता ही कर सकते हैं कोई हवा-हवाई नहीं. विगत चुनावों में अगर बिहार भाजपा को सबसे अधिक सवर्णों का वोट दिलवाया तो वो हैं माननीय सांसद गिरिराज सिंह जी. जिस समय सुशील मोदी ठेहुनिया मारे रहते थे उस समय गिरिराज जी मंत्री पद पर रहते हुए भी तत्कालीन माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के गठबंधन विरोधी कार्यकलापों का जमकर लगातार खुलेआम विरोध किए थे. सवर्णों के मन-मिजाज और वोट को लगभग पूरी तरह उन्होंने नीतीश जी के पाले से हटाकर बीजेपी के पक्ष में करने में भरपूर भूमिका अदा की. बीजेपी को मजबूत किया माननीय Ashwini Kumar Choubey ने, Chandramohan Rai ने, Janardan Singh Sigriwal ने, Dr. C P Thakur ने. पर संगठन में चाटुकारिता कर निर्णयकर्ता रहे सुशील कुमार मोदी. चंद्रमोहन राय को तो जबरन राजनीतिक संन्यास दे दिया गया और सवर्ण नेता संगठन में इतने निःशक्त हो गए कि मोदी की मनमानी के खिलाफ समय पर किसी ने आवाज तक नहीं उठाई. मैंने पूर्व में भी लिखा है और अपनी बात को पुनः दुहरा रहा हूँ कि दासत्व-भाव के साथ वोट देने से बेहतर विरोध करना होता है. मेरे मन में भी बिहार को नई ऊँचाईयों तक जाते देखने की उत्कट आकाँक्षा है पर यह भी ध्यातव्य है कि यह राज्य के सभी लोगों की सामूहिक जिम्मेवारी है. हमें सामंत कहें और और सामंतवादी व्यवहार आप करें, ऐसा नहीं चलेगा. सवर्णों को एकजुट होकर बिहार भाजपा पर हावी व्यक्तिवाद का विरोध करना चाहिए और नहीं तो फिर एक झटके में इसे मटियामेट कर देने से भी नहीं हिचकना चाहिए. सवर्ण नेताओं की बढ़ती उपेक्षा और बिहार भाजपा को सुशील मोदी द्वारा व्यक्तिगत संपत्ति समझने की भूल इसे बर्बादी के रास्ते ही ले जाएगी. केन्द्रीय नेतृत्व हस्तक्षेप कर इसका समाधान निकाल सकती है नहीं तो आज भी सुशील मोदी से बेहतर नीतीश कुमार ही हैं.

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