Thursday 8 May 2014

थेथरोलॉजी में माहिर लालू ने कांग्रेस से किया थेथर याराना


राजद प्रमुख लालू प्रसाद थेथरोलॉजी (कुतर्क, झूठी दलील) में माहिर हैं, इसलिए वे हर काम इसी के सहारे करते हैं। वे (तर्क-तथ्य ) नहीं, (थेथरोलॉजी) में भरोसा करते हैं। कांग्रेस से गठबंधन, चुनाव परिणाम के दावे, चारा घोटाला पर सफाई और दिल्ली में सरकारी बंगला बचाये रखने तक में उनकी थेथरोलॉजी सामने रही है।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बिहार की चुनाव सभाओं में लालू प्रसाद को अपने मंच पर आने नहीं दिया, लेकिन लालू कांग्रेस से अपना थेथर याराना निभा रहे हैं। वे कांग्रेस के नेतृत्व वाली भ्रष्ट यूपीए सरकार की वापसी के लिए वोट मांग रहे हैं, जब कि भाजपा देश को मजबूत सरकार देकर महंगाई-बेरोजगारी जैसी समस्याओं का समाधान करना चाहती है।

थेथरोलॉजी के साथ-साथ लालू प्रसाद का भरोसा चोरी और सीनाजोरी के मुहावरे में भी है। करोड़ों रुपये के चारा घोटाला में अपराधी साबित होने के बावजूद कांग्रेस की मेहरबानी से मिली जमानत पर रिहाई के समय उन्होंने सीनाजोरी वाला अंदाज दिखाया। हाथी पर सवार होकर जेल से निकले। आरोप साबित होने के बावजूद खुद को निर्दोष बताने की थेथरोलॉजी करते रहे।

2010 के विधानसभा चुनाव के दौरान सीना ठोक कर सत्ता में लौटने के दावे (थेथरोलॉजी) करते रहे। तथ्य यह सामने आया कि उनकी पार्टी केवल 22 सीटों पर सिमट गई। विपक्ष का नेता बनवाने लायक संख्या भी राजद के पास नहीं थी। अब लोकसभा चुनाव में लालू की थेथरोलॉजी जारी है। सीटों का खाता खुलने का भी ठिकना नहीं है, लेकिन दावा सभी 40 सीटें जीतने का कर रहे हैं।

कहते हैं कि पुरानी आदतें जल्दी नहीं छूटतीं। लालू की थेथरोलॉजी फिर सामने आई। रेल मंत्री का पद छूटे कई साल हो गए। चारा घोटाला में अपराधी पाए जाने के चलते वे सांसद भी नहीं रहे, लेकिन दिल्ली का बंगला (तुगलक रोड) बचाये रखने के लिए बीमारी का बहाना (थेथरोलॉजी) कर रहे हैं। वे दिल और शुगर की बीमारी का हवाला दे रहे हैं, लेकिन बेटी-पत्नी की जीत के लिए महीने भर से रोज दस-दस चुनाव सभाएं कर रहे हैं।


लालू प्रसाद इसी थेथरोलॉजी से जनता को भरमा कर 15 साल तक बिहार को लूटते रहे। सत्ता गई तो सुधरने का वादा किया और जनता से माफी भी मांगी, लेकिन परिवारवाद, राजनीति के अपराधीकरण, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश और सोनपुर में अफसरों के साथ दबंगई कर उन्होंने फिर साबित किया कि लालू नहीं बदले हैं। उन पर भरोसा करना देश-प्रदेश की जनता पर कुशासन थोपना साबित होगा। लोकसभा चुनाव में भाजपा को दिया गया हर वोट लालू प्रसाद की थेथर राजनीति का मुहंतोड़ जवाब साबित होगा।

1 comment:

  1. भाजपा के जाने-माने कद्दावर नेता और प्रख्यात चिकित्सक डॉ० सी पी ठाकुर का यह वक्तव्य कि "भाजपा उन्हें चपरासी समझती है" भाजपा में रह रहे मात्र एक नेता का दर्द नहीं बल्कि इस पार्टी की बिहार इकाई में सवर्णों की वास्तविक स्थिति को प्रदर्शित करता वक्तव्य है. माननीय सुशील मोदी की अगुवाई में केन्द्रीय नेताओं को बरगलाकर बिहार भाजपा ने अघोषित तौर पर पार्टी में सवर्णों को अनवरत मुख्य-धारा की राजनीति से अलग-थलग रखने का कुचक्र अभियान चला रखा है. यहाँ सब कुछ मोदी की मर्जी से होता है, अगर किसी ने विरोध करने की जहमत उठाई तो उसे किनारा लगा दिया जाता है, भय और लोभ वश कुछ सवर्ण नेता सुशील मोदी की चरण-चाकरी कर अपने को नेता होने का भ्रम पाल बैठे हैं. कुछ लोग कहते हैं कि भाजपा का आधार मजबूत करने में सुशील मोदी की मेहनत है. मुझे लगता है सुशील मोदी का अपना जनाधार तो है नहीं फिर पार्टी का जनाधार कैसे बढ़ा सकते हैं. पार्टी को मजबूत, जमीनी पकड़ और लोगों में पैठ रखनेवाले नेता ही कर सकते हैं कोई हवा-हवाई नहीं. विगत चुनावों में अगर बिहार भाजपा को सबसे अधिक सवर्णों का वोट दिलवाया तो वो हैं माननीय सांसद गिरिराज सिंह जी. जिस समय सुशील मोदी ठेहुनिया मारे रहते थे उस समय गिरिराज जी मंत्री पद पर रहते हुए भी तत्कालीन माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के गठबंधन विरोधी कार्यकलापों का जमकर लगातार खुलेआम विरोध किए थे. सवर्णों के मन-मिजाज और वोट को लगभग पूरी तरह उन्होंने नीतीश जी के पाले से हटाकर बीजेपी के पक्ष में करने में भरपूर भूमिका अदा की. बीजेपी को मजबूत किया माननीय Ashwini Kumar Choubey ने, Chandramohan Rai ने, Janardan Singh Sigriwal ने, Dr. C P Thakur ने. पर संगठन में चाटुकारिता कर निर्णयकर्ता रहे सुशील कुमार मोदी. चंद्रमोहन राय को तो जबरन राजनीतिक संन्यास दे दिया गया और सवर्ण नेता संगठन में इतने निःशक्त हो गए कि मोदी की मनमानी के खिलाफ समय पर किसी ने आवाज तक नहीं उठाई. मैंने पूर्व में भी लिखा है और अपनी बात को पुनः दुहरा रहा हूँ कि दासत्व-भाव के साथ वोट देने से बेहतर विरोध करना होता है. मेरे मन में भी बिहार को नई ऊँचाईयों तक जाते देखने की उत्कट आकाँक्षा है पर यह भी ध्यातव्य है कि यह राज्य के सभी लोगों की सामूहिक जिम्मेवारी है. हमें सामंत कहें और और सामंतवादी व्यवहार आप करें, ऐसा नहीं चलेगा. सवर्णों को एकजुट होकर बिहार भाजपा पर हावी व्यक्तिवाद का विरोध करना चाहिए और नहीं तो फिर एक झटके में इसे मटियामेट कर देने से भी नहीं हिचकना चाहिए. सवर्ण नेताओं की बढ़ती उपेक्षा और बिहार भाजपा को सुशील मोदी द्वारा व्यक्तिगत संपत्ति समझने की भूल इसे बर्बादी के रास्ते ही ले जाएगी. केन्द्रीय नेतृत्व हस्तक्षेप कर इसका समाधान निकाल सकती है नहीं तो आज भी सुशील मोदी से बेहतर नीतीश कुमार ही हैं.

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