Tuesday 13 May 2014

बिहार में सर्वे-अनुमान से कहीं बेहतर होंगे एनडीए की जीत के परिणाम...

बिहार में सर्वे-अनुमान से कहीं बेहतर
होंगे एनडीए की जीत के परिणाम

भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए को बिहार में मतदान-बाद सर्वे के अनुमान से कहीं  ज्यादा बेहतर परिणाम मिलेंगे। बिहार के  40 में से 26 संसदीय क्षेत्रों में भाजपा के पीएम-प्रत्याशी नरेंद्र भाई मोदी ने जन सभाएं कीं। 3डी तकनीक से भी प्रदेश में उनकी 168 सभाएं हुईं। इनमें  7 लाख से ज्यादा लोग शरीक हुए। 18 से 28 आयु वर्ग के युवा मतदाताओं और महिलाओं ने उत्साह के साथ वोट डाले। ग्रामीण क्षेत्रों में भी बदलाव के लिए जोश दिखाई पड़ा।मतदान का प्रतिशत हर चरण में औसतन 10 फीसद तक बढ़ा। 1977 के एतिहासिक चुनाव जैसी सत्ता विरोधी लहर थी और नरेंद्र मोदी के रूप में मजबूत विकल्प बिल्कुल स्पष्ट था।

इन सारी बातों को जोड़कर देखा जाए तो टीवी चैनलों पर प्रसारित एक्जिट-पोल मोदी-लहर की आंशिक झलक मालूम पड़ते हैं। 16 मई को आने वाले वास्तविक चुनाव परिणाम इससे कहीं ज्यादा प्रभावशाली और मजबूत सरकार की पक्की गारंटी देने वाले होंगे।

सर्वे का संकेत है कि यद्यपि बिहार के अधिकतर क्षेत्रों में राजद-कांग्रेस गठबंधन  एनडीए से मुकाबले में है, लेकिन केवल माई समीकरण से वह कहीं चुनाव जीत नहीं सकता।  समाज के कई वर्ग लालू प्रसाद और कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं। आज भाजपानीत गठबंधन को बिहार में पिछड़ा,अतिपिछड़ा, सवर्ण, दलित-महादलित और माई समीकरण के एक वर्ग का समर्थन भी हासिल है। लोग विकास के मुद्दे पर साथ आए हैं।

 बिहार की लगभग हर पंचायत में रोजगार के लिए गुजरात जाने वाले और वहां से लौट कर खुशहाली की सच्ची कहानी दूसरे ग्रामीणों को बताने वाले लोग हैं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और उनके विकास माडल में बिहारियों का विश्वास बढ़ने की यह भी बड़ी वजह है। ये सारी बातें चुनाव परिणाम को और भी सुर्ख रंगों में लिखने वाली हैं।  

1 comment:

  1. भाजपा के जाने-माने कद्दावर नेता और प्रख्यात चिकित्सक डॉ० सी पी ठाकुर का यह वक्तव्य कि "भाजपा उन्हें चपरासी समझती है" भाजपा में रह रहे मात्र एक नेता का दर्द नहीं बल्कि इस पार्टी की बिहार इकाई में सवर्णों की वास्तविक स्थिति को प्रदर्शित करता वक्तव्य है. माननीय सुशील मोदी की अगुवाई में केन्द्रीय नेताओं को बरगलाकर बिहार भाजपा ने अघोषित तौर पर पार्टी में सवर्णों को अनवरत मुख्य-धारा की राजनीति से अलग-थलग रखने का कुचक्र अभियान चला रखा है. यहाँ सब कुछ मोदी की मर्जी से होता है, अगर किसी ने विरोध करने की जहमत उठाई तो उसे किनारा लगा दिया जाता है, भय और लोभ वश कुछ सवर्ण नेता सुशील मोदी की चरण-चाकरी कर अपने को नेता होने का भ्रम पाल बैठे हैं. कुछ लोग कहते हैं कि भाजपा का आधार मजबूत करने में सुशील मोदी की मेहनत है. मुझे लगता है सुशील मोदी का अपना जनाधार तो है नहीं फिर पार्टी का जनाधार कैसे बढ़ा सकते हैं. पार्टी को मजबूत, जमीनी पकड़ और लोगों में पैठ रखनेवाले नेता ही कर सकते हैं कोई हवा-हवाई नहीं. विगत चुनावों में अगर बिहार भाजपा को सबसे अधिक सवर्णों का वोट दिलवाया तो वो हैं माननीय सांसद गिरिराज सिंह जी. जिस समय सुशील मोदी ठेहुनिया मारे रहते थे उस समय गिरिराज जी मंत्री पद पर रहते हुए भी तत्कालीन माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के गठबंधन विरोधी कार्यकलापों का जमकर लगातार खुलेआम विरोध किए थे. सवर्णों के मन-मिजाज और वोट को लगभग पूरी तरह उन्होंने नीतीश जी के पाले से हटाकर बीजेपी के पक्ष में करने में भरपूर भूमिका अदा की. बीजेपी को मजबूत किया माननीय Ashwini Kumar Choubey ने, Chandramohan Rai ने, Janardan Singh Sigriwal ने, Dr. C P Thakur ने. पर संगठन में चाटुकारिता कर निर्णयकर्ता रहे सुशील कुमार मोदी. चंद्रमोहन राय को तो जबरन राजनीतिक संन्यास दे दिया गया और सवर्ण नेता संगठन में इतने निःशक्त हो गए कि मोदी की मनमानी के खिलाफ समय पर किसी ने आवाज तक नहीं उठाई. मैंने पूर्व में भी लिखा है और अपनी बात को पुनः दुहरा रहा हूँ कि दासत्व-भाव के साथ वोट देने से बेहतर विरोध करना होता है. मेरे मन में भी बिहार को नई ऊँचाईयों तक जाते देखने की उत्कट आकाँक्षा है पर यह भी ध्यातव्य है कि यह राज्य के सभी लोगों की सामूहिक जिम्मेवारी है. हमें सामंत कहें और और सामंतवादी व्यवहार आप करें, ऐसा नहीं चलेगा. सवर्णों को एकजुट होकर बिहार भाजपा पर हावी व्यक्तिवाद का विरोध करना चाहिए और नहीं तो फिर एक झटके में इसे मटियामेट कर देने से भी नहीं हिचकना चाहिए. सवर्ण नेताओं की बढ़ती उपेक्षा और बिहार भाजपा को सुशील मोदी द्वारा व्यक्तिगत संपत्ति समझने की भूल इसे बर्बादी के रास्ते ही ले जाएगी. केन्द्रीय नेतृत्व हस्तक्षेप कर इसका समाधान निकाल सकती है नहीं तो आज भी सुशील मोदी से बेहतर नीतीश कुमार ही हैं.

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