Monday 12 May 2014

महापरिवर्तन की ओर बढ़ रहा देश

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महापरिवर्तन की ओर बढ़ रहा देश

सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में युवाओं और महिलाओं ने जिस उत्साह के साथ भारी मतदान किया, उससे साफ है कि देश महापरिवर्तन की ओर बढ़ रहा है। सभी चरणों में मतदान का प्रतिशत बढ़ना केंद्र की भ्रष्ट और नकारा सरकार को बनाये रखने के लिए हरगिज नहीं हो सकता। यह भी तय है कि अगली लोकसभा में क्षेत्रीय दलों की प्रासंगिकता और सौदेवाजी करने की उनकी ताकत घटेगी, क्योंकि जनता अब मजबूत सरकार चाहती है।

पिछले दो-तीन सालों में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों के विधान सभा चुनावों में लोगों ने जिस दल को भी चुना, उसे पूर्ण बहुमत दिया, ताकि सरकार काम कर सके। यही ट्रेंड लोकसभा चुनाव में ज्यादा प्रभावशाली होकर सामने आएगा। भाजपा अकेले पूर्ण बहुमत प्राप्त करेगी और सहयोगी दलों के साथ मिलकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाएगी। लोग उस क्षण की आकुल प्रतीक्षा करने लगे हैं।

वैसे तो इस चुनाव में जनता की भागीदारी बढ़ने के पीछे चुनाव आयोग और अन्य माध्यमों के जागरूकता अभियान का अच्छा योगदान रहा, लेकिन भाजपा के पीएम-प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने तो उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उन्होंने जनता से सीधा संवाद करने की अद्भुत शैली, प्रचार के लिए अथक परिश्रम और सकारात्मक परिवर्तन के लिए युवाओं में जुनून पैदा कर इस चुनाव को अविस्मरणीय बना दिया। 15 सितंबर 2013 से 10 मई 2014 तक, आठ माहीनों में उन्होंने देश भर में 437 सभाओं को सीधे संबोधित करने का विश्व रिकार्ड बनाया। 4 लाख किलोमीटर की उनकी चुनाव यात्रा पृथ्वी की दस परिक्रमा करने के बराबर है। उनकी हर सभा में लाखों लोगों का उमड़ना  ऐतिहासिक था। यह बदलाव के तूफान का संकेत है।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले इसी प्रचार अभियान का फल भाजपा को पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और उत्तर पूर्व के राज्यों में भी मिलने वाला है, जहां भाजपा राजनीतिक ताकत नहीं मानी जाती नमो-प्रभाव (मोदी इफेक्ट) की वजह से पार्टी के पारंपरिक प्रभाव वाले हिंदी प्रदेशों में जातीय समीकरण बेअसर साबित हुए हैं। देश पर महंगाई-बेरोजगारी, करोड़ों रुपये के घोटाले और कमजोर नेतृत्व थोपने वाली यूपीए सरकार की विदाई के लिए जनता की लोकतांत्रिक भागीदारी याद की जाएगी। इतिहास उनका भी लिखा जाएगा, जो इस त्रासद यथास्थिति को बनाये रखने के लिए भाजपा पर अनर्गल हमले कर रहे थे।

1 comment:

  1. भाजपा के जाने-माने कद्दावर नेता और प्रख्यात चिकित्सक डॉ० सी पी ठाकुर का यह वक्तव्य कि "भाजपा उन्हें चपरासी समझती है" भाजपा में रह रहे मात्र एक नेता का दर्द नहीं बल्कि इस पार्टी की बिहार इकाई में सवर्णों की वास्तविक स्थिति को प्रदर्शित करता वक्तव्य है. माननीय सुशील मोदी की अगुवाई में केन्द्रीय नेताओं को बरगलाकर बिहार भाजपा ने अघोषित तौर पर पार्टी में सवर्णों को अनवरत मुख्य-धारा की राजनीति से अलग-थलग रखने का कुचक्र अभियान चला रखा है. यहाँ सब कुछ मोदी की मर्जी से होता है, अगर किसी ने विरोध करने की जहमत उठाई तो उसे किनारा लगा दिया जाता है, भय और लोभ वश कुछ सवर्ण नेता सुशील मोदी की चरण-चाकरी कर अपने को नेता होने का भ्रम पाल बैठे हैं. कुछ लोग कहते हैं कि भाजपा का आधार मजबूत करने में सुशील मोदी की मेहनत है. मुझे लगता है सुशील मोदी का अपना जनाधार तो है नहीं फिर पार्टी का जनाधार कैसे बढ़ा सकते हैं. पार्टी को मजबूत, जमीनी पकड़ और लोगों में पैठ रखनेवाले नेता ही कर सकते हैं कोई हवा-हवाई नहीं. विगत चुनावों में अगर बिहार भाजपा को सबसे अधिक सवर्णों का वोट दिलवाया तो वो हैं माननीय सांसद गिरिराज सिंह जी. जिस समय सुशील मोदी ठेहुनिया मारे रहते थे उस समय गिरिराज जी मंत्री पद पर रहते हुए भी तत्कालीन माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के गठबंधन विरोधी कार्यकलापों का जमकर लगातार खुलेआम विरोध किए थे. सवर्णों के मन-मिजाज और वोट को लगभग पूरी तरह उन्होंने नीतीश जी के पाले से हटाकर बीजेपी के पक्ष में करने में भरपूर भूमिका अदा की. बीजेपी को मजबूत किया माननीय Ashwini Kumar Choubey ने, Chandramohan Rai ने, Janardan Singh Sigriwal ने, Dr. C P Thakur ने. पर संगठन में चाटुकारिता कर निर्णयकर्ता रहे सुशील कुमार मोदी. चंद्रमोहन राय को तो जबरन राजनीतिक संन्यास दे दिया गया और सवर्ण नेता संगठन में इतने निःशक्त हो गए कि मोदी की मनमानी के खिलाफ समय पर किसी ने आवाज तक नहीं उठाई. मैंने पूर्व में भी लिखा है और अपनी बात को पुनः दुहरा रहा हूँ कि दासत्व-भाव के साथ वोट देने से बेहतर विरोध करना होता है. मेरे मन में भी बिहार को नई ऊँचाईयों तक जाते देखने की उत्कट आकाँक्षा है पर यह भी ध्यातव्य है कि यह राज्य के सभी लोगों की सामूहिक जिम्मेवारी है. हमें सामंत कहें और और सामंतवादी व्यवहार आप करें, ऐसा नहीं चलेगा. सवर्णों को एकजुट होकर बिहार भाजपा पर हावी व्यक्तिवाद का विरोध करना चाहिए और नहीं तो फिर एक झटके में इसे मटियामेट कर देने से भी नहीं हिचकना चाहिए. सवर्ण नेताओं की बढ़ती उपेक्षा और बिहार भाजपा को सुशील मोदी द्वारा व्यक्तिगत संपत्ति समझने की भूल इसे बर्बादी के रास्ते ही ले जाएगी. केन्द्रीय नेतृत्व हस्तक्षेप कर इसका समाधान निकाल सकती है नहीं तो आज भी सुशील मोदी से बेहतर नीतीश कुमार ही हैं.

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