Tuesday 6 May 2014

पिछड़ाें की राजनीति को 'नीच' बता रहीं पियंका गांधी

कांग्रेस को बर्दास्त नहीं हो रही नमो लहर

भाजपा के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र भाई मोदी के पक्ष में बढ़ते समर्थन से विचलित कांग्रेस पिछड़े तथा कमजोर वर्गों का अपमान करने पर उतारू है। कांग्रेस की स्टार प्रचारक पियंका गांधी वाड्रा ने अमेठी में नमो की 'नीच राजनीति' का जवाब देने की बात कहकर समाज के पिछड़े  वर्गों को आहत किया है। कांग्रेस के लिए यह असह्य हो गया है कि गरीब-पिछड़े समुदाय से आनेवाला एक व्यक्ति उसकी कुलीन सत्ता को कैसे चुनौती दे रहा है।
साठ साल से नेहरू-गांधी परिवार देश पर काबिज रहा, फिर भी उसकी भूख नहीं मिटी है। देश की आजादी और इसके नवनिर्माण में महात्मा फुले, भीम राव अम्बेदकर से लेकर सरदार पटेल तक का योगदान रहा, लेकिन सत्ता सिर्फ एक ही परिवार के हाथ रही। इस परिवार को गरीबों की समस्याओं का कोई एहसास नहीं है।
नरेंद्र मोदी ने गरीबी देखी। चाय बेचने जैसी जीविका से हालात का सामना किया। मुश्किलों के बीच पढ़ाई की। गरीबी के चलते जामनगर के सैनिक स्कूल में दाखिला नहीं ले पाए। समाज के लिए त्याग और सादगी का जीवन अपनाया। उनके 13 साल से मुख्यमंत्री रहने के बावजूद मां वोट डालने के लिए आँटोरिक्शा से मतदान केंद्र पहुंची थीं।
दूसरी तरफ पियंका वाड्रा के पति ने केंद्र और कांग्रेस शासित राज्यों की मेहरबानी से पांच साल में एक लाख रूपये से 324 करोड़ की कमाई की। वे मोदी की राजनीति को 'नीच' कह रही हैं। इससे पहले कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर ने नमो की गरीबी का मजाक उड़याा था और उन्हें कांग्रेस मुख्यालय के बाहर चाय-स्टाल लगाने का मौका देने की बात कही थी। पिछड़े वर्गों के इस अपमान का बदला लोकसभा चुनाव में जनता भारी मतदान के जरिए देगी।

1 comment:

  1. भाजपा के जाने-माने कद्दावर नेता और प्रख्यात चिकित्सक डॉ० सी पी ठाकुर का यह वक्तव्य कि "भाजपा उन्हें चपरासी समझती है" भाजपा में रह रहे मात्र एक नेता का दर्द नहीं बल्कि इस पार्टी की बिहार इकाई में सवर्णों की वास्तविक स्थिति को प्रदर्शित करता वक्तव्य है. माननीय सुशील मोदी की अगुवाई में केन्द्रीय नेताओं को बरगलाकर बिहार भाजपा ने अघोषित तौर पर पार्टी में सवर्णों को अनवरत मुख्य-धारा की राजनीति से अलग-थलग रखने का कुचक्र अभियान चला रखा है. यहाँ सब कुछ मोदी की मर्जी से होता है, अगर किसी ने विरोध करने की जहमत उठाई तो उसे किनारा लगा दिया जाता है, भय और लोभ वश कुछ सवर्ण नेता सुशील मोदी की चरण-चाकरी कर अपने को नेता होने का भ्रम पाल बैठे हैं. कुछ लोग कहते हैं कि भाजपा का आधार मजबूत करने में सुशील मोदी की मेहनत है. मुझे लगता है सुशील मोदी का अपना जनाधार तो है नहीं फिर पार्टी का जनाधार कैसे बढ़ा सकते हैं. पार्टी को मजबूत, जमीनी पकड़ और लोगों में पैठ रखनेवाले नेता ही कर सकते हैं कोई हवा-हवाई नहीं. विगत चुनावों में अगर बिहार भाजपा को सबसे अधिक सवर्णों का वोट दिलवाया तो वो हैं माननीय सांसद गिरिराज सिंह जी. जिस समय सुशील मोदी ठेहुनिया मारे रहते थे उस समय गिरिराज जी मंत्री पद पर रहते हुए भी तत्कालीन माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के गठबंधन विरोधी कार्यकलापों का जमकर लगातार खुलेआम विरोध किए थे. सवर्णों के मन-मिजाज और वोट को लगभग पूरी तरह उन्होंने नीतीश जी के पाले से हटाकर बीजेपी के पक्ष में करने में भरपूर भूमिका अदा की. बीजेपी को मजबूत किया माननीय Ashwini Kumar Choubey ने, Chandramohan Rai ने, Janardan Singh Sigriwal ने, Dr. C P Thakur ने. पर संगठन में चाटुकारिता कर निर्णयकर्ता रहे सुशील कुमार मोदी. चंद्रमोहन राय को तो जबरन राजनीतिक संन्यास दे दिया गया और सवर्ण नेता संगठन में इतने निःशक्त हो गए कि मोदी की मनमानी के खिलाफ समय पर किसी ने आवाज तक नहीं उठाई. मैंने पूर्व में भी लिखा है और अपनी बात को पुनः दुहरा रहा हूँ कि दासत्व-भाव के साथ वोट देने से बेहतर विरोध करना होता है. मेरे मन में भी बिहार को नई ऊँचाईयों तक जाते देखने की उत्कट आकाँक्षा है पर यह भी ध्यातव्य है कि यह राज्य के सभी लोगों की सामूहिक जिम्मेवारी है. हमें सामंत कहें और और सामंतवादी व्यवहार आप करें, ऐसा नहीं चलेगा. सवर्णों को एकजुट होकर बिहार भाजपा पर हावी व्यक्तिवाद का विरोध करना चाहिए और नहीं तो फिर एक झटके में इसे मटियामेट कर देने से भी नहीं हिचकना चाहिए. सवर्ण नेताओं की बढ़ती उपेक्षा और बिहार भाजपा को सुशील मोदी द्वारा व्यक्तिगत संपत्ति समझने की भूल इसे बर्बादी के रास्ते ही ले जाएगी. केन्द्रीय नेतृत्व हस्तक्षेप कर इसका समाधान निकाल सकती है नहीं तो आज भी सुशील मोदी से बेहतर नीतीश कुमार ही हैं.

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